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अजीब आँखें || Weird eyes || AJIB ANKHAY || Rajan Keshri ||❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞ || ❝Panktiya; Kuch mayri kuch tumhari❞.
डर सबको लगता हैं | |Everyone feels fear || Drr sbko lgta hae || Rajan Keshri ||❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞

अजीब आँखें || Weird eyes || AJIB ANKHAY || Rajan Keshri ||❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞ || ❝Panktiya; Kuch mayri kuch tumhari❞.

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 ❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞

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अजीब आँखें

Weird eyes

अजीब आँखें


ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी ये हृदय को धीर दे |

कभी कटार सी चिर दे |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी ये किसी को आग दे |

कभी ये सिने में  छरा दाग दे |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी जख्मो से जल जाती हैं |

कभी दर्द में पिंगल जाती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी रातभर  सूरज की आश में रहती हैं |

कभी दिनभर चाँद की प्यास में रहती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी किसी कि याद में तरस जाती हैं |

कभी किसी कि याद में बरस जाती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी किसी को देख कर भभक जाती हैं |

कभी किसी को देख कर चमक जाती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी बिना कहे सब कुछ बता देती हैं |

कभी लाख पूछने पर भी सब कुछ छुपा लेती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी ये  रोशनी में  देख नही पाती हैं |

कभी ये अंधेरे में सदियां देख लेती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी इनकी बूंदे  जान लेती हैं |

कभी ये तुफानो को बांध लेती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी किताबों को छान लेती हैं |

कभी एक खत में जिया थाम लेती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी कोरे कागज को देख मचल जाती हैं |

कभी रंगों को देख कर खिल जाती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी ये किसी से  डर जाती हैं |

 कभी किसी को डरा देती हैं |


ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी फड़फड़ाती फिरती हैं |

कभी किसी पे थम जाती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी काफी कुछ कह जाती हैं |

कभी काफी कुछ सह जाती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी किसी को दग़ा देती हैं |

कभी किसी से दिल लगा देती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी किसी बेढंगे हो सवार देती हैं |

कभी किसी शाहसी को एक झपक पे मार देती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी किसी कुवारे  को आशिक बना देती हैं |

कभी किसी अजनबी को आवारा बना देती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी ये किसी नासूर का वैद बन लेती हैं |

कभी ये किसी बेचारे को कैद कर लेती हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी कोई इनमे समाने को पछताता हैं |

कभी शायद ही कोई इनकी कैद से निकल पाता हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी इनसे किसी को देख लेते हैं |

कभी ख्वाबो से इनको सेक लेते हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी ये लड़ कर बीमार होते हैं |

कभी ये लड़ कर दो से चार होते हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी गुस्से में ये लाल पीले होते हैं |

कभी हस-हस कर ये गिले होते हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी नींद से ढीले होते हैं |

कभी बंदा गिरा दे ये इतने नशीले होते हैं |

 

ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !

कभी  रात को ये चादर ओढ़ लेते हैं |

कभी हंसते- हंसते ये दुनिया छोड़ देते हैं |

 

 राजन केसरी 

 

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 ❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞

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डर सबको लगता हैं | |Everyone feels fear || Drr sbko lgta hae || Rajan Keshri ||❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞

 

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 ❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞

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डर सबको लगता हैं |

 

डर सबको लगता हैं

डर सबको लगता हैं

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई जीने से डरता हैं,

कोई मरने से |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई कुछ कहने से डरता हैं,

कोई चुप रहने से|

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई वापस आने को डरता हैं,

कोई हमेशा के लिए चले जाने से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई ज्यादा खाने से डरता हैं,

कोई भूखा रहने से  |


डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई किसी को सुनने से डरता हैं,

कोई किसी को समझाने  से  |


डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई अंधेरे से डरता हैं,

कोई उजाले से  |


  डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई सच बताने से  डरता हैं,

कोई सच छुपाने  से  |


डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई किसी के कुछ समझाने से  डरता हैं,

कोई किसी से कुछ पूछने  से  |

  

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई खुदको न पाने से डरता  हैं,

कोई खुद को खो देने से  |


डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई इश्वर के न सुनने  से डरता हैं,

कोई इश्वर से  |


डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई बेचैनी  से डरता हैं,

कोई सन्नाटे  से  |


डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई किसी के टूटने   से डरता हैं,

कोई किसी के रूठने  से  | 


डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई किसी को भूल  कर डरता हैं,

कोई किसी को याद करने  से  |


डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई साथ रहने से डरता हैं,

कोई अकेले रहने  से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई नाउम्मीदी  से डरता  हैं,

कोई नाकामयाबी से  |


डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई रोने से डरता   हैं,

कोई हसने  से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई गुलामी से डरता हैं,

कोई आजादी से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई झूट से डरता  हैं,

कोई सच  से  |

  

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई पराये  से डरता हैं,

कोई अपनों  से  |

  

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई सपना टूटने से डरता  हैं,

कोई सपना देखने   से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई काम करने से डरता हैं,

कोई बेरोज़गारी से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई जानवरों से डरता  हैं,

कोई इन्सानो से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई अपने दुख से डरता हैं,

कोई दुसरे के सुख से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई किसी की नफरत से डरता  हैं,

कोई किसी की वफादारी  से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई आगे बढ़ने से डरता हैं,

कोई  थम जाने  से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई पढ़ने से डरता  हैं,

कोई  पढ़ाने वाले  से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई  सरकार से डरता हैं,

कोई सरकारी नौकरों  से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई बॉस से डरता हैं,

कोई बीबी से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई  बुरे लोगो से डरता हैं,

कोई अच्छे लोगो से  |

  

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई पापियों से डरता हैं,

कोई पाप से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई अत्याचार से डरता  हैं,

कोई बगावत से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई किसी के दूर जाने से डरता हैं,

कोई किसी के पास आने  से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई दुसरो को देख कर डरता हैं,

कोई खुद  से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई घरवालो से डरता  हैं,

कोई  उनके आंसुओं   से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई यार से डरता   हैं,

कोई किसी की यारी से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई बेवकूफो से डरता  हैं,

कोई समझदारो से  |

 

डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई मैफिल से डरता  हैं,

कोई तन्हाई से  |


डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई सम्मान से  डरता  हैं,

कोई अपमान  से  |

 

  डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई मरने पर दूत से  डरता हैं,

कोई  जीतेजी  भूत से  |


डर,

डर सबको लगता हैं |

बस फर्क इतना हैं,

कोई बीते हुए कल से  डरता हैं,

कोई आनेवाले कल  से  |


राजन केसरी 

 

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 ❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞

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