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❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞
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अजीब आँखें
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी ये हृदय को धीर दे |
कभी कटार सी चिर दे |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी ये किसी को
आग दे |
कभी ये सिने में छरा दाग दे |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी जख्मो से जल जाती हैं |
कभी दर्द में पिंगल जाती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी रातभर सूरज की आश में रहती हैं
|
कभी दिनभर चाँद की प्यास में रहती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी किसी कि याद में तरस जाती हैं |
कभी किसी कि याद में बरस जाती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी किसी को देख कर भभक जाती हैं |
कभी किसी को देख कर चमक जाती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी बिना कहे सब कुछ बता देती
हैं |
कभी लाख पूछने पर भी सब कुछ छुपा लेती
हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी ये रोशनी में देख नही पाती हैं |
कभी ये अंधेरे में सदियां देख लेती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी इनकी बूंदे जान लेती हैं |
कभी ये तुफानो को बांध लेती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी किताबों को छान लेती हैं |
कभी एक खत में जिया थाम लेती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी कोरे कागज को देख मचल जाती हैं |
कभी रंगों को देख कर खिल जाती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी ये किसी से डर जाती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी फड़फड़ाती फिरती हैं |
कभी किसी पे थम जाती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी काफी कुछ कह जाती हैं |
कभी काफी कुछ सह जाती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी किसी को दग़ा देती हैं |
कभी किसी से दिल लगा देती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी किसी बेढंगे हो
सवार देती हैं |
कभी किसी शाहसी
को एक झपक पे मार देती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी किसी कुवारे को आशिक बना देती हैं |
कभी किसी अजनबी को आवारा बना देती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी ये किसी
नासूर का वैद बन लेती हैं |
कभी ये किसी बेचारे को कैद कर लेती हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी कोई इनमे समाने को पछताता हैं |
कभी शायद ही कोई इनकी कैद से निकल पाता हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी इनसे किसी को देख लेते हैं |
कभी ख्वाबो से इनको सेक लेते हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी ये लड़ कर बीमार होते हैं |
कभी ये लड़ कर दो से चार होते हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी गुस्से में ये लाल पीले होते हैं |
कभी हस-हस कर ये गिले होते हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी नींद से ढीले होते हैं |
कभी बंदा गिरा दे ये इतने
नशीले होते हैं |
ये आँखें भी बड़ी अजीब होती हैं !
कभी रात को ये चादर ओढ़ लेते हैं |
कभी हंसते- हंसते ये दुनिया छोड़ देते हैं |
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❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞
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2 टिप्पणियाँ
Beautiful 😇
जवाब देंहटाएंThanks 😊
हटाएंThank you for your visit. Please post your suggestions. If you have any.