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❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞
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पानी
लोग अक्सर बारिश
में भीग जाते हैं,
एक हम हैं जो
आंखों में सागर समेट के बैठे हैं
|
वो हमसे जब
समुद्र देखने की बात करते हैं,
हम कहते हैं
हमारी दो आंखें देख लो |
जिनके नसीब
में डूबनेभर पानी नहीं मिलता,
वो अक्सर अपनी आंखों
में डूब जाते हैं |
एक जेहन है जो
जलता रहता है कभी बुझता नहीं
दो नैन है जो
बरसते रहते हैं कभी बुझाते नहीं |
हर कश्ती को
किनारा नहीं मिलता,
और जो खुद की आंखों में डूबा हो,
उसे किसीका सहारा नहीं
मिलता |
जो लड़ाएगा नैन
हमसे उसे मजा खूब आएगा,
पानी को तरसेगा, और डूबता चला जाएगा |
कुछ लोगों की
बातें इतनी गीली होती है,
कि सुखी आंखों को भी भीगा देती है |
तुम हंसते क्यों
हो इतना क्या कोई आश नही तरसने को ?
हम ये उन्हें
कैसे बताएं की कोई कंधा नहीं बरसने को |
दिन, दोपहर, समय, कोई नजारा नहीं देखते,
जिनकी आंखें भरी होती है वो डूबने को किनारा नहीं देखते ।
लोग गहराई नापते हैं डूबने से पहले ।
दो आंखें काफी है डूब जाने को ।
न कोंस इतना
बरसात को एक दिन पानी को तू तरस जाएगा
एक बार जो यह
बरस गया फिर न जाने सावन कब आएगा |
नालायक है वो बादल जिसमें भरे उजाले होते हैं,
जो धरती को सीचदे, वो बादल, अक्सर काले होते हैं |
रुकना ना किसी के गाने पे, ना किसी के ताने पे गर्जना हैं। आने वाला है हमारा मौसम हमें तो तभी बरसना है ।
दुनिया कहती है
हमें “तुम बरसोगे नहीं कभी, बस गरजते जाओगे” |
डर तो हमें इस
बात का है के
जिस दिन हम बरस
गए ए दुनिया, तुम जमीन को तरस जाओगे |
राजन केसरी
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