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❝ पंक्तियां; कुछ मेरी कुछ तुम्हारी | ❞
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मेरा चाँद
मेरा चाँद
आज लिख के हैं तुझको बताना हुआ,
ये पथर दिल आज किसी-का दीवाना हुआ |
मुझसे मेरे नजरो ने लगाई, एक सिफारिश हैं,
तुझमे किसी को देखने की, उनकी ख्वाइस हैं |
हाल सुनले हमारा, क्यों कर रहा बादलो की नुमाइश हैं,
ऐ चाँद तुझसे बस इतनी सी गुज़ारिश हैं |
बात पुराणी हैं मगर, आज जिक्र अख़बार हुआ,
भूल गया हूँ, कब चाँद का दीदार हुआ |
न खुद कुछ कहता ,
मेरी सुनता ही नही ,
मेरा चाँद आज –कल मुझे मिलता ही नही |
खफ़ा हैं वो मुझसे ,
थोड़ा वो खता हैं,
बिन बुलाये आता था, आज भुला पता हैं |
न पास हैं जमी न पास अश्मा हैं,
मेरे चाँद में समाया मेरा मुकम्मल जहां हैं |
सितारों से भरा असमान ,
चादर तान सोना सही,
जिस असमान में चाँद नही उसे छोड़देना सही |
चेहरे पर दाग ही सही सीरत चमचमाती पाई हैं ,
मेरे चाँद ने अपनी एसी शख़्सियत बनाई हैं |
दहलीज़ पे आता, घर में न समता हैं,
मेरा चाँद मुझसे झरोखे से ही बतियाता हैं |
चाँद दीखता, आसमान से हट जाती नजर हैं ,
कुछ ऐसा होता, चाँद का मुझपे असर हैं |
ऐसा क्या हैं तुझमे ,
क्यों तुझमे डूब जाता हूँ ,
तुझसे बातें करते-करते, जग को भूल जाता हूँ |
जब बादलों में अक्सर चाँद, छुप जाता हैं,
ये समा न जाने क्यों, रुक सा जाता हैं |
रूक गई हैं धरती, क्या इसमें जा न नही,
क्यों असमान में मेरे आज मेरा चाँद नही |
देखे तेरा नूर नजरो को एक जमाना हुआ,
ऐ चाँद तू मुझसे इतना क्यों बेगाना हुआ |
बादलो की भूलभुलैया में, चाँद से हाथ छुट गया,
कुछ इस तरह से, मेरा चाँद मुझसे रुठ गया |
चाँद ने खड़ी की आज बिच बदलो की दीवार हैं,
ऐ चाँद क्या यही तेरा मुझपे एतबार हैं |
मिलले मुझसे न कर मेरे इरादों की आज़माइश,
ऐ चाँद बस इतनी सी हैं मेरी ख्वाइस |
राजन केसरी
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